बाबा बैद्यनाथ धाम
बाबा बैद्यनाथ धाम भारत के राज्य झारखंड में स्थित एक जिले से है जोकि देवघर नाम से प्रचलित है। देवघर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है देव और घर। देव का अर्थ देवी-देवताओ से है और घर का अर्थ निवास स्थान अर्थात रहने की जगह से है। यह हिन्दुओ के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है क्योकि यहां भगवान शिव का एक अत्यंत पुराना मंदिर है जहाँ 12 ज्योतिर्लिंगों मे से एक ज्योतिलिंग स्थित है जो एक शक्तिपीठ भी है। इसमें भगवान शिव के साथ साथ देवी पार्वती और भगवान गणेश की मूर्तियां भी स्थापित है। यहाँ प्रार्थना रोज सुबह चार बजे पुजारी द्वारा की जाती है। फिर इसी के बाद ही भक्तजनो को पूजा करने की अनुमति दी जाती है। इसे देखने के लिए विभिन्न स्थानों से लाखो-करोड़ो की संख्या मे श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है।
महत्व
यह मान्यता है कि मंदिर में आने वालों की भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है | इसलिए मंदिर में स्थापित शिवलिंग अर्थात शक्तिपीठ को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह लिंग रावण के शक्ति का भी प्रतीक है सावन के महीने में यहां एक श्रावणी मेला भी लगता है जहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए कावड़ लेकर आते हैं और गंगा जल चढ़ाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं |
कथा
एक बार राक्षस राज भवन शिवजी को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तपस्या कर रहा था जिस तपस्या में इतना खो गया कि वह अपने सिर के बाल काट काट कर शिवलिंग पर चढ़ाने लगा एक-एक करके अपने 9 सिर चढ़ाने के बाद अपने 10 में सिर को काटने के लिए तैयार हो गया था परंतु इसी बीच शिव जी प्रसन्न होकर प्रकट हो गए थे और उन्होंने रावण के दसों सिर को पहले जैसा कर दिया और उसे वरदान मांगने के लिए कहा | रावण ने उस लिंग को लंका में ले जाने की आज्ञा मांगी | शिवजी ने अनुमति तो दे दी परंतु इसी के साथ एक चेतावनी भी दी कि यदि मार्ग में इसे तुम पृथ्वी पर या धरा पर रख दोगे तो यह वह वही अचल हो जाएगा अर्थात स्थापित हो जाएगा | इसी के साथ रावण शिवलिंग को लेकर जा रहा था कि उसे मार्ग में अति तीव्र प्यास लग गई जिस वजह से वह उस लिंग को किसी अपरिचित व्यक्ति को सौंप कर पानी पीने के लिए चला गया जिस दौरान उस व्यक्ति ने ज्योतिर्लिंग को बहुत अधिक भारी अनुभव कर भूमि पर रख दिया | फिर क्या था, लौटने पर रावण पूरी शक्ति लगाकर भी उसे वहां से उठाने में असमर्थ रहा और निराश होकर वापस लंका को आ गया | इसी बीच ब्रह्मा, विष्णु आदि देवी-देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की आराधना की और शिवलिंग की वहीं उसी स्थान पर प्रतिस्थापना कर दी और और वापस चले आए |
बाबा बैद्यनाथ मंदिर के नजदीक अन्य प्रसिद्ध धार्मिक स्थल –
यदि आप बाबा बैद्यनाथ मंदिर के दर्शन करने जा रहे हैं तो आपको इस बाबा बैद्यनाथ मंदिर के साथ-साथ आसपास के धार्मिक स्थलों का भी दर्शन करके आना चाहिए | मंदिर के आसपास के सभी धार्मिक स्थलों का उचित वर्णन नीचे दिया गया है |
वासुकीनाथ ज्योतिर्लिंग
वासुकीनाथ मंदिर झारखंड के दुमका जिले में देवघर-दुमका राज्य राजमार्ग पर स्थित है | लाखों श्रद्धालु हर वर्ष देश के विभिन्न स्थानों से मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने के लिए आते हैं और सावन के महीने में तो श्रद्धालुओं की संख्या बहुत बढ़ जाती है क्योंकि यहां ने केवल स्थानीय और राष्ट्रीय पर्यटक बल्कि अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक भी आते हैं | बैद्यनाथ मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक की वासुकीनाथ मंदिर के दर्शन न किए गए हो क्योकि वासुकीनाथ मंदिर शिव मंदिर के लिए जाना जाता है | यह मान्यता भी हाल फिलहाल में ही प्रचलन में आई है। पहले ऐसी मान्यता का प्रचलन नहीं था न ही पुराणों में इसका कोई खास वर्णन है यह मंदिर देवघर से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आपको यहां पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखने का मौका मिल सकता है।
त्रिकूट पर्वत
त्रिकुटा पर्वत का नाम इस स्थान की कलाकृति के कारण रखा गया है | त्रिकुट पर्वत के तीन मुख्य चोटियां है जो कि तीन हिंदू देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात शिव) के नाम पर हैं। त्रिकुटा पर्वत, बाबा बैजनाथ धाम से सिर्फ 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | सबसे ऊंची चोटी समुद्र तल से 2470 फीट और जमीन से लगभग 1500 फीट की ऊंचाई तक जाती है जोकि ट्रैकिंग के लिए एक अच्छा और सुगम स्थान बनाती हैं | तीन में से दो चोटियां तो पर्यटकों के लिए खुली है क्योंकि इन दो चोटियों में से दो चोटियों को ट्रेकिंग के लिए सुरक्षित माना जाता है जबकि तीसरी चोटी का रास्ता अत्यधिक खड़ी ढलानों की वजह से दुर्गम माना गया है। यह पर्वत अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सौंदर्यता के लिए भी जाना जाता है और बारिश के मौसम में पहाड़ी बादलों से ढकी रहती है |
नंदन पर्वत
नंदन पर्वत बाबा बैद्यनाथ धाम से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | यह शहर के किनारे पर एक छोटा सा पर्वत है | पहाड़ी पर कई मंदिरों में भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और देव कार्तिक की खूबसूरत मूर्तियां हैं | वहां पर एक पानी की टंकी भी है जो पूरे रास्ते में फिल्टर किए गए पानी की सुविधा उपलब्ध करवाती है | पर्यटक यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त के सुंदर दृश्य भी देख सकते हैं | ऐसा कहा जाता है कि पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण ने शिवधाम में जबरन प्रवेश करने की कोशिश की थी जब वहां पर नंदी भगवान शिव के द्वारपाल नंदी थे | नंदी ने रावण को परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया | इस पर रावण क्रोधित हो गया और नंदी को यहां (नंदन पर्वत) पर फेंक दिया | तभी से इस जगह को नंदन पर्वत के नाम से जाना जाने लगा |
तपोवन पर्वत
तपोवन पर्वत देवघर से नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहां पर एक शिव का मंदिर भी है जो श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है | शिव के इस मंदिर को तपोनाथ महादेव मंदिर भी कहा जाता है | यह पर्वत अपनी प्राकृतिक सुंदरता, सौंदर्यता और आध्यात्मिक महत्व के कारण पर्यटको, तीर्थयात्रियों, और श्रद्धालुओं के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र है | प्राचीन काल मे यह ऋषियों और योगियों के लिए तपस्या का एक स्थान था | पहाडी की गुफाओं में से एक में एक शिवलिंग स्थापित है और यह माना जाता है कि ऋषि बाल्मीकि यहां तपस्या के लिए आए थे | यह भी कहा जाता है कि रावण यहां तपस्या के लिए आया था और देवताओं ने हनुमान को रावण के ध्यान को तोड़ने के लिए निर्देश दिया था | तब हनुमान ने अपनी शक्तियों से पर्वत की चट्टानों को तोड़ दिया जिससे वहां उस पत्थर पर दरार हो गयी और उस दरार के बीच में एक मंदिर भी स्थित है क्योकि वहा दरार के आंतरिक सतह पर आपको हनुमान का एक चित्र देखने को मिल सकता है। यहां एक बहुत पुरानी प्राचीन परंपरा म नवमी के अवसर पर ध्वजा चढ़ाने की आज तक चली आ रही है। उस पहाड़ी के नीचे एक छोटा जलकुंड भी है जिसे सीता कुंड के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यह एक एक पवित्र कुंड है जहां माता सीता स्नान किया करती थी।
नौलखा मंदिर
देवघर शहर से दो किलोमीटर दूर स्थित एक मंदिर है जो नौलखा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह अपनी सुंदरता, भक्ति और प्रेम के लिए जाना जाता है। इस मंदिर की स्थापना 1940 में की गई थी जिसकी ऊंचाई लगभग 146 फीट है।
नौलखा मंदिर का निर्माण कोलकाता के पथुरिया घाट की रानी चारुशीला द्वारा दान के रूप में नौ लाख रुपये दिए किए गए थे। इसलिए दान की राशि के नाम पर इस मंदिर का नाम नौलखा मंदिर रखा गया है। मंदिर में राधाकृष्ण की बड़ी ही भव्य मूर्तियाँ स्थापित है। इसमें संत बालानंद भ्रह्म्चारी की भी एक मूर्ति स्थापित है।